बिहार की पत्रकारिता के गौरव क्रूपाकरण
बिहार से एक हजार किलोमीटर से ज्यादा दूर पांडिचेरी में जन्मे पी॰के॰ क्रूपाकरण (पांडिचेरी कनक सभापति क्रूपाकरण) ने बिहार और बिहार की पत्रकारिता को अपनी जिंदगी क्यों दे दी? एक तमिल भाषी, अंग्रेजी पत्रकार ने क्यों बिहार की धरती, बिहार की भाषा, बिहार की संस्कृति को इतनी तरजीह दी? बिहार के बौद्धिक परिवेश में उनके जाने के बाद उनके व्यक्तित्व पर बहस-विमर्श का एक दौर शुरू हो गया है। पिछले दिनों, बिहार के सबसे ज्यादा जाग्रत विचार केन्द्र गाँधी संग्रहालय में बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन और गाँधी संग्रहालय के संयुक्त तत्वाधान में क्रूपाकरण स्मृति गोष्ठी का आयोजन किया गया।
गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए बी॰बी॰सी॰ लंदन के बिहार प्रमुख पत्रकार मणिकांत ठाकुर ने बताया कि उन्होंने किस तरह ठोक-ठोक कर मुझे प्रोपीपुल रिर्पोटिंग की शिक्षा दी। वे कहते थे-प्रोपीपुल रिपोर्टिंग से रिपोर्ट में जान आ जाती है। मैं प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से सवाल करने की हिम्मत नहीं जुटा रहा था। क्रूपाकरण जी ने रास्ते में इस तरह मुझे उत्साहित कर दिया कि जब मैंने इंदिरा जी से एक कड़ा सवाल पूछा तो इंदिरा जी ने उस सवाल का सही जवाब तो नहीं दिया पर सवालकर्ता को चुप करने के लिए मेरे बारे में ऐसी टिप्पणी कर दी कि सबको हँसने के लिए मजबूर कर दिया। आज मैं क्रूपाकरण जी को अपने जीवन का संबल और बिहार की पत्रकारिता का एक शिखर पत्रकार मानता हूँ।
अर्थशास्त्री प्रोफेसर नवल किशोर चैधरी ने कहा कि जे॰पी॰ आंदोलन में इंडियन एक्सप्रेस की बड़ी भूमिका थी। उस समय बहस के केन्द्र में अखबार की खबरें रहती थीं। जिस आंदोलन के लैंडमार्क जे॰पी॰ थे, उस आंदोलन को ताकतवर बनाने में क्रूपाकरण जी जैसे पत्रकार की भूमिका बहुत ही महत्वपूर्ण थी। क्रूपाकरण जी के बारे में विश्वविद्यालयों और पत्रकारिता संस्थानों में अध्ययनरत युवा पत्रकारों को जानने की जरूरत है।
दो दशक तक विधान पार्षद रहे समाजवादी नेता और क्रूपाकरण जी के घनिष्ठ मित्र इंद्र कुमार ने कहा कि जे॰पी॰ आंदोलन की गर्भ से निकले नेता लोग टिकट बांटने-मांगने में इतने व्यस्त हैं कि क्रूपाकरण जी को भूल गये, ऐसे नेताओं का पत्रकार बिरादरी बहिष्कार करे। इंद्रकुमार ने क्रूपाकरण जी की याद में डाक बंगला चैराहा के पास विद्यालय उपनिरीक्षिका परिसर के पुराने परिसर में सरकारी सौजन्य से काफी हाउस शुरू करने की माँग की। वरिष्ठ अंगे्रजी पत्रकार और ‘द मेसेनिक टाइम’ के लेखक अभय सिंह ने क्रूपाकरण जी को अपनी पत्रकारिता का एक आइकान बताया।
गाँधीवादी डा॰ रजी अहमद ने कहा कि इंडियन एक्सप्रेस, इमरजेंसी, जे॰पी॰ और क्रूपाकरण एक दूसरे के पूरक हो गये हैं। जिस टेलीप्रिंटर से क्रूपाकरण जी समाचार भेजते थे, वही टेलीप्रिंटर आंदोलन के बारे में देश भर से सूचना प्राप्त करने का माध्यम था। क्रूपाकरण जी सर्चलाईट के पत्रकार मास्टर साहब की बराबर चर्चा किया करते थे कि किस तरह मास्टर साहब बांस घाट पर अपनी पत्नी की जलती हुई चिता छोड़कर साईकिल से खबर भेजने दफ्तर आ गये थे। उस समय मंटू घोष, आजाद साहब, मास्टर साहब, क्रूपाकरण जैसे पत्रकारों की एक पीढ़ी थी, जिनके बारे में जानना नई पीढ़ी के लिए जरूरी है।
जे॰पी॰ आंदोलन के नेता अख्तर हुसैन ने कहा- समाचारों से संघर्ष की जो धारा बनती है, क्रूपाकरण जी उस धारा के नायक थे। उन्होंने राजनीति और नैतिकता से जुड़े कुछ ऐसे सवाल मुझसे पूछ लिये थे, जो जीवन में किसी दूसरे ने कभी नहीं पूछे। ऐसा कहते हुए हुसैन रो पड़े।
युवा पत्रकार इमरान ने सिर्फ एक बार की मुलाकात का जिक्र करते हुये बताया कि उन्होंने कहा था- पत्रकारिता फार या एगेंस्ट नहीं होती है। पत्रकारिता अंततः सत्य ही होती है। नयी पीढ़ी को उत्साहित करने के लिए क्रूपाकरण स्मृति पत्रकारिता आवार्ड की शुरुआत होनी चाहिए।
नन्दीग्राम डायरी के लेखक पुष्पराज ने कहा कि तमिल, तेलुगू, मलयालम, बांग्ला, उर्दू, संस्कृत, हिन्दी, अंग्रेजी सहित आठ भाषाओं के ज्ञाता क्रूपाकरण को बिहार की पत्रकारिता के पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए। बिहार श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के महासचिव अरुण कुमार ने कहा कि यूनियनों के अवसान का यह काल बुरे दौर से गुजर रहा है। ऐसे में यूनियन को नया जीवन दिलाने के लिए हम क्रूपाकरण जी को याद कर रहे हैं। गोष्ठी में एस॰यू॰सी॰आई॰ केन्द्रीय कमिटि सदस्य अरूण सिंह, पत्रकार अमित कुमार, रंगकर्मी अनीश अंकुर सहित शहर के कई गणमान्य बुद्धिजीवी शरीक थे।
(Mediamorcha se sabhar)