Friday, 7 October 2011

स्टीव ज़ॉब्स , एडिसन और कार्ल मार्क्स

स्टीव जॉब्स युवावस्था में भारत आये थे इस उम्मीद में कि यहाँ उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होगी लेकिन वे इस देश की गरीबी को देखकर इतने परेशान हो गए कि उन्हें लगा कि इस देश को आध्यात्मिक गुरूओं या राजनैतिक सिद्धांतकारों से अधिक तकनीकी प्रतिभाओं की जरूरत है जो उनके जीवन को बेहतर बना सके. उनका एक प्रसिद्ध कथन है कि टॉमस एडिसन कार्ल मार्क्स से ज्यादा उपयोगी हैं क्योंकि उनके काम से मानवता का अधिक भला हुआ. जॉब्स ने बडे काम किए हैं लेकिन इस कथन को स्वीकार करना कठिन है. समाज में जितनी भी समृद्धि हो अगर उसके पास नैतिकता न हो तो वह समाज काम्य नहीं हो सकता. रावण की लंका सोने की थी. निश्चित रूप से वहाँ अयोध्या से अधिक समृद्धि थी लेकिन क्या इस कारण से उसे बेहतर माना जा सकता है ? मनुष्य -मनुष्य के बीच कोई भेद न हो और लोग समानता और भातृत्व के साथ समाज में रह सकें इस विचार को आगे लाने के लिए प्रयत्नशील लोग तकनीकी प्रगति के लिए प्रयत्नशील प्रतिभाओं से ज्यादा जरूरी हैं. हाँब्सबाम ने याद दिलाया है कि बीसवीं शताब्दी इतिहास की सबसे हिंसक शताब्दी थी जिसने युद्ध के चरित्र को ही बदल दिया. पहले युद्ध करने वाली सेना, युद्ध के दौरान मारी जाती थी और युद्ध के बाद शांति का दौर शुरू होता था. लेकिन, बीसवीं शताब्दी ने युद्ध नहीं करने वालों को भी मारना शुरू किया और युद्ध के बाद भी युद्ध को बनाए रखने के लिए संसाधन जुटाए रखे. यह सब कुछ तकनीक के सहारे हुआ और तकनीक ने इसे 'लेजिटिमाइज' भी किया. खाडी युद्ध को कैसे भुलाया जा सकता है ? अफगानिस्तान से लेकर इराक तक न जाने कितने उदाहरण दिए जा सकते हैं. जब तक मानवता के पास बेहतर समाज का स्वप्न नहीं होगा सिर्फ तकनीक उसे विनाश के रास्ते पर ही ले जाएगी. एच जी वेल्स के 'टाइम मशीन' का स्मरण हो आता है.

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