Tuesday, 6 April 2010

प्यारे जोशी की कहानी रह जाएगी

नेत्र बल्ल्भ जोशी की तेरहवीं पर उनके चाहनेवाले कलकत्ता, जबलपुर और दिल्ली से चलकर कुकुछिना पहुंचे. कलकत्ता से विजय शर्मा और मैं 28 मार्च को चलकर 30 की शाम को वहाँ पहुंचे. लखनऊ में रवीन्द्र शुक्ला भी मिल गये. हमलोग साथ साथ कुकुछिना पहुंचे. वहाँ जोशी जी का शोक संतप्त परिवार तो था ही आस पास के कई लोग बैठे हुए थे. यह देख कर तसल्ली हुई कि परिवार दु:खी तो था लेकिन अपने को संयत कर सकने में सफल था. दो दिनों बाद दिल्ली से बाणी शरद, बीना जी एवं तोषाण भी आ गये. हम सब जोशी जी को याद करते रहे. एक दुश्चिंता यह घेरे थी कि हमलोग जिस जगह से इतना जुड चुके हैं उस जगह से जोशी जी के चले जाने के बाद किस तरह अपने को जोडे रख सकते हैं. लगता है एक अध्याय खत्म हो गया. हम सब जोशी जी की तेरहवीं (2 अप्रिल) को उनके शोक संतप्त परिवार और स्वजनों के साथ थे. 3 तारीख को मैं कलकत्ता के लिए रवाना हुआ. बाद में सभी विदा हुए. प्यारे जोशी जी की कहानी रह जाएगी.

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