Friday, 2 October 2009

छत्रधर महतो के सनसनीखेज बयान और मीडिया

अब इस बात को मानने में किसी को संदेह नहीं रह गया है कि मीडिया का दुरूपयोग सरकारी तंत्र करना सीख गया है. जो 'सनसनीखेज' तथ्य पेश किए जा रहे हैं वे इस उद्देश्य से किए जा रहे हैं कि लालगढ के आम आदिवासी को यह समझाया जा सके कि यह उनका आदमी नहीं है. यह एक प्रचलित स्ट्रेटेजी है कि किसी को जनता से अलगाना हो तो उसे धनी और व्यभिचारी सिद्ध करने के लिए अभियान चलाया जाये. सी पी एम समेत सभी दल इस काम में माहिर हैं. उनकी कुछ राजनीतिक मजबूरियां हो सकती हैं, लेकिन पुलिस इस काम को जिस तरह कर रही है उसे देख कर यह साफ लगता है कि पुलिस पार्टी के नियंत्रण में ही काम कर रही है. जगदीश्वर चतुर्वेदी की यह बात ठीक है कि एक करोड की पॉलिसी होना और उडीसा में एक मकान होना अपराध नहीं है लेकिन सी पी एम यह समझती है कि अगर इस तरह की चीजें फैला दी जाये और जिन बुद्धिजीवियों ने साहस जुटाकर सी पी एम की हिंसक नीतियों का विरोध किया था उनको माओवादी, नक्सलवादी आदि कहकर जनता की निगाह में नीचा दिखा दिया जाये तो वे खोया हुआ जनाधार वापस पा सकते हैं. गनीमत है कि उसके चरित्र-हनन के लिए दो तीन औरतों को उसकी बीवी या रखैल बनाकर पेश नहीं किया गया है.
हाय री बुद्धि!
सी पी एम के नेताओं को अभी भी उम्मीद है कि मुसलमानों और आदिवासियों को वे फिर से अपने समर्थन में ला सकते हैं. अब एक प्रखर मुस्लिम नेता को सी पी एम का आधिकारिक प्रवक्ता बना दिया गया है. आने वाले दिनों में किसी 'असली आदिवासी' सी पी एम नेता को आगे किया जाएगा. अभी शायद मिल नहीं रहा.मो. सलीम और फय्याज़ अहमद खान को छोडकर कोई भी मुस्लिम नेता भी शायद सी पी एम के पास नहीं है. आप इनके अलावा और किसी को मीडिया में सी पी एम की तरफ से बोलता हुआ शायद न पाएंगे अगर मामला मुसलमान से संबंधित हो.
छत्रधर महतो एक नहीं है. बेचारा दर दर की ठोकरें खाता रहा, सबके पास जाता रहा, बडी बडी बातें बोलकर लोगों का ध्यान खींचता रहा. असली मुद्दा है लालगढ में आम लोगों के मन में सरकार के प्रति अविश्वास. वह मीडिया में नहीं आ रहा. हमारा दुर्भाग्य.

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