कोलकाता के एक हिंदी कथाकार की भविष्यवाणियाँ पढते हुए कुछ समय बीत गया है. मुझे लगता है इस कथाकार की बातों को मित्रों के बीच रखा जाना चाहिए. लोगों को मज़ा आयेगा. हो सकता है इन बातों में अगर 'मेरिट' होगा (जिसे मुझ जैसा आदमी समझ नहीं पा रहा) तो लोग मुझे समझने में मदद करेंगे. ये महाशय नाम बदल बदल कर कभी राधेलाल तो कभी व्योम तो कभी दुबे बनकर अपने फ्यूचरिस्टिक सोच का प्रचार कर रहे हैं. बडी मेहनत कर रहे हैं पर हाय रे हिंदीवाले पूर्वांचली वे इन बातों को अभी तक ठीक से समझ नहीं सक रहे.
क्या हैं ये विचार. बातें तो उन्होंने बहुत घिनौने तरीके से भी कही हैं लेकिन ब्लॉग की गरिमा को ध्यान में रखते हुए एक ही छोटी टिप्पणी दे रहा हूं. आशा है लोग इस महान व्यक्ति के महान उद्गारों को समझने में मेरी मदद करेंमन भर आया,ग्लानि और पाप बोध के हिमालय के नीचे दबा पडा हूं। सचमुच हम औरत को ऐसे रखते हैं,दबा कर ,कुचल कर,बिस्तर और चादर की तरह…फिर अपने चारो ओर नजर दौडाई।
विश्वास के साथ कह सकता हूं कि ऐसा मैंने देखा नहीं-हो सकता है -वो नजर ही अल्लाह ने ना बख्शी हो। यह क्या प्रांत विशेष ,भाषा विशेष का सच हो सकता है,या भारत में यूनिवर्सल सच है। बिहार का सच पूरे भारत का सच नहीं है।पूरे हिंदी प्रदेश में भी साम्य नहीं है। कस्बे का सच महानगर का सच नहीं है। काम-काजी महिलाओं का सच सारी औरतों का सच ना हो?पढी लिखी होने के अपने पचडे हों,मह्त्वाकांक्षा क्या -क्या नहीं करवाती। महत्वाकांक्षा ना कह कर लालच-लोभ भी कह सकते हैं। अनप्रोडक्टिव महिला-पुरुष को कैरियर बनाने के लिये दुष्चक्र में फंसना पडता है। स्त्री थोडी ज्यादा वलनरेवल है ,पुरुष से। ये समस्या ‘गो पट्टी’ की ज्यादा है,मीडीया,कॉलेज,सरकारी नौकरी ,हिंदी,कस्बा,
(प्रदेश का नाम लेना ठीक नहीं होगा),ये सब मिल कर एक गोल बनाते हैं-जहां ये बीमारी महामारी का रूप ले चुकी है। बंगाल में ऐसा नहीं होता,शायद हरियाणा-राजस्थान,पंजाब में भी नहीं। दक्षिण भारत में भी नहीं । अब जिनके लिये अकादमिक कैम्पस ही भारत है,उनकी बात अलग है। जहां दूसरे रोजगार हैं,इटरप्योनोरशिप है ,उन्हें इस गलाजत के बगैर भी डिग्निटी सुलभ है। सरकारी नौकरी पाना जब लॉटरी लगने जैसा हो गया है,तो फिर लॉटरी की कीमत भी वसूली जाना घोर अपराध नहीं है। 5 साल जाने दीजिये सरकारी नौकरियों के लिये ‘सुपारी किलर’ तैनात होंगे। रेल मंत्रालय अगर गरीब मुल्क में 5-10 लाख मुवाअजा देने लगे तो लोग बाप -भाईयों-माता-बहनों को रेल से धक्का देकर हत्या पर उतारू होंगे। गरीब मुल्क है ना,खाई चौडी हो रही है,और पूरा समाज इस खाई में गिर कर मरेगा। :ps:सांसदों का वेतन पांच गुना बढ गया है,दुनिया के सरकारी चाकर एक हों।इंक्लाब जिंदाबाद
गे.
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