Monday, 18 January 2010

ज्योति बसु का देहांत

ज्योति बसु भारतीय कम्युनिस्ट आन्दोलन की एक धारा के सबसे बडे नेता थे, इसमें कोई संदेह नहीं.  1940 से लेकर 2000 तक वे अपनी पार्टी के लिए समर्पित रहे और अपने तरीके से आम लोगों के लिए काम करने की कोशिश करते रहे. प्रमोद दास गुप्ता की मृत्यु के बाद वे अपने दल के सबसे मान्य नेता बने रहे. 23 वर्षों तक बंगाल जैसे राज्य में मुख्यमंत्री बने रहने एक उपलब्धि से कम नहीं.
आज ज्योति बसु का मूल्यांकन करने का समय नहीं है, लेकिन जिस तरह उनका महानीकरण और  बंगालीकरण किया जा रहा है उसको किसी भी तरह से सही नहीं कहा जा सकता. वे कभी भी महान नेता नहीं थे और न ही उन्होंने किसी बडे जनान्दोलन का नेतृत्व किया. वे कोई महान विचारक या विजनरी भी नहीं थे.  वे एक यथार्थवादी और लोकतांत्रिक प्रक्रिया की शक्तियों को पहचानने वाले एक वामपंथी नेता थे.
मिलोवान जिलास ने रूस के कम्युनिस्ट शासन के पतन के बाद कहा था कि जो लोग लेनिन को महान और स्टालिन को खराब नेता कहते हैं वे भूल करते हैं. स्टालिन ने लेनिन के कार्य को ही आगे बढाया. ठीक उसी तरह बुद्धदेव भट्टाचार्य को खराब और ज्योति बसु को महान नेता कहा जाना गलत है. भूमि सुधार से लेकर पंचायती राज के सच को ठीक से प्रचारित नहीं किया गया है जिसकी वजह से वाम शासन की एक आदर्श छवि पूरे देश में प्रचारित है. इस शासन का मूल ढांचा ज्योति बसु का ही तैयार किया गया था. बसु को एक बडा नेता माना जाना चाहिए ठीक वैसे ही जैसे बीजू पटनायक को. लेकिन वो कोई जयप्रकाश नारायण नहीं थे. उनकी जो छवि अभी मीडिया में प्रचारित की जा रही है वह भ्रामक है.

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