ज्योति बसु के बारे में बंगाल के बाहर के लोगों को ठीक से जानकारी नहीं है. इस कारण उनकी महानता के बारे में भ्रम बनने और उसके टिकने के पूरे आसार हैं. वे एक बडे नेता थे और अपनी पार्टी में उनका मान था जो अंत समय तक बना रहा. लेकिन उनकी मृत्यु के बाद उनके बारे में जो बातें कही सुनी जा रही हैं उसमें कुछ जानकारियों को शामिल नहीं किया जाता. मैं कोशिश करूंगा कि उनके बारे में कुछ व्यक्तिगत जानकारियां उपलब्ध करवा सकूं ताकि लोग उनके बारे में अपनी राय ठीक से बना सकें.ज्योति बसु के पिता श्री निशिकांत बसु एक होम्योपैथिक डॉक्टर थे. वे बिधानचन्द्र राय और नलिनी रंजन सरकार के घनिष्ट मित्र थे. नीलरतन सरकार ने ही निशिकांत बसु की नियुक्ति एक मेडिकल ऑफिसर के रूप में हिन्दुस्तान इंश्योरेंस कम्पनी में की थी. वे शुरू से ही कलकत्ता में रहते थे. 1924 में उन्होंने कलकत्ता के एक समृद्ध इलाके- हिन्दुस्तान पार्क में जमीन खरीदी और एक विशाल भवन बनवाया. ज्योति बसु की बह्न सुधा देवी का विवाह प्रसिडेंसी कालेज के प्रिंसिपल डॉ स्नेहमय दत्त से हुई.
इंग्लैंड जाकर वे आई सी एस बनना चाहते थे. एक बार परीक्षा में बैठे भी लेकिन सफल नहीं हो सके. ज्योति बसु 1939 में भारत वापस आये और उनके पिता ने उनकी शादी ईशान चन्द्र घोष की पोती छवि से की. पर तीन वर्ष बाद छवि की मृत्यु हो गयी. बिधानचन्द्र राय ने छवि को बचाने की भरसक कोशिश की, पर सफल नहीं हो सके. यह ज्योति बसु के लिए एक बड़ा झटका था. बाद में, 1948 में ज्योति बसु का विवाह कमल बसु से हुआ.
स्नेहांसु आचार्य से ज्योति बसु की गहरी मित्रता थी जो कायम रही. स्नेहांसु आचार्य कम्युनिस्ट पार्टी में शामिल नहीं हुए और अपना पूरी ध्यान कानून के क्षेत्र में केन्द्रित रखा. पर वे बाद में वामफ्रंट के शासन में एडवोकेट जनरल बने. उनके आवास पर ही कम्युनिस्ट और अन्य दलों के नेताओं का मिलना जुलना होता था.
ज्योति बसु ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई और कभी भी कांग्रेस के साथ अपने को संबद्ध नहीं किया.
भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी को ब्रिटिश कम्युनिस्ट पार्टी की एक शाखा समझा जाता था. 1942 में रूस पर जर्मनी के आक्रमण के बाद कम्युनिस्ट पार्टी ने ब्रिटेन की सफलता की कामना की. 1943 के महाअकाल के समय में भी कम्युनिस्ट पार्टी ने "विचारधारात्मक" कारण से कोई टिप्पणी नहीं की.
jyoti basu ke itihas ki jankari dene ke liye shukriya...
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