Monday, 31 August 2009
प्रभाष जोशी का बचाव और अभद्रता का प्रदर्शन निन्दनीय
यह बहुत ही दुखद है कि एक बहस को इस तरह व्यक्तिगत बना दिया गया. जगदीश्वर चतुर्वेदी समेत तमाम लोग सती के प्रसंग में प्रभाष जोशी के वक्तव्य के सन्दर्भ में अपना विरोध दर्ज कर रहे थे. ऐसा करना बिल्कुल ठीक है. प्रभाष जोशी गांधी जी हों तो भी इस विचार का विरोध होना चाहिए. आपको याद होगा कि गांधी के एक वक्तव्य – भूकंप हमारे पापों का फल है- के आने के बाद टैगोर ने गांधी का विरोध किया था. तब क्या गांधी के समर्थक – नेहरू-पटेल आदि क्या टैगोर को औकात बताने के लिए कूद पडे थे? और फिर प्रभाष जोशी अगर ब्लाग पर नहीं आते तो इसके क्या? तोमर जी को मैं बहुत अच्छा पत्रकार मानता रहा हूं. अब अचानक वे धमकाने पर उतर आयेंगे इसकी उम्मीद कतई नहीं थी. शायद वे समझते हैं कि ब्लाग पर इस तरह की लठैती वाली भाषा बोलने से उनका कोई नुकसान नहीं होगा. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि प्रभाष जोशी पटना में अपने भाषण का समापन इस बात से करते हैं कि मैं प्रभाष जोशी, सती का समर्थक … यह हिन्दी समाज का दिवालियापन है. हम अंग्रेजों से कुछ सीख सकते हैं. डीन जोंस एक प्रतिष्ठित क्रिकेट खिलाडी और कमेंटेटर थे. एक बार एक एक खिलाडी को टेरोरिस्ट बोल गये. वह दक्षिण अफ्रीकी खिलाडी मुसलमान था और इस कमेंट का विरोध हुआ. उसके बाद डीन जोंस के माफी मांगने के बाद भी उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया, अनुबंध का नवीकरण नहीं हुआ. ये कमेंट मामूली नहीं हैं मान्यवर. आप सती को परंपरा का अंग उन्नसवीं सदी में नहीं कह रहे हैं आज कह रहे हैं जब सारी दुनिया को इस जघन्य प्रथा की असलियत पता चल चुकी है. बचपन में सुना हुआ एक प्रसंग याद आता है. सुनता था कि जब पुल बनता है तो नरबलि न दी जाये तो पुल टूट जाता है. हर पुल बनने के बाद बच्चे की बलि दी ही जाती है. लोग कहते थे कि यह तो हमारी परंपरा है. बाल मन में मेरे स्वप्न में वे बच्चे दिखाई देते थे, उनकी चीख सुनाई देती थी. बस्तर में राजा जब जंगल से गुजरता था तो दस बीस आदिवासियों को मार कर फेंक दिये जाने की प्रथा थी ताकि बाघों से भरे जंगल में बाघ का पेट भरा रहे और राजा पर बाघ आक्रमण न करे. यह भी परंपरा थी. कहिए कि इस तरह का जघन्य अपराध भी परंपरा में है. समरथ को नहीं दोष गुसाईं एक समय लिखा गया है. अब युग बीत गया है. अब ज्यादा धमकाइयेगा और धौंस दिखाईयेगा और कुलीन राजपूती शान बघारियेगा तो हास्यास्पद हो जाइयेगा. गर्व करना है अपने कुलीन राजपूत होने पर तो घर में करिए. हिन्दी के लोकतांत्रिक संसार में इस तरह की अलोकतांत्रिक भाषा का प्रयोग करने के जुर्म में जनता आपको माफ कर देगी इसमें संदेह है.
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment