Thursday 20 August, 2009

भारतीय मुसलमान, जिन्ना और इकबाल

जिन्ना का जिन्न फिर से जाग गया है. किसी को भी बी जे पी को पीटने का मन करे तो उसे जिन्ना का गुणगान शुरू कर देना चाहिए. यह नहीं मानने का कोई कारण नहीं है कि जिन्ना ने भारत विभाजन का दु:स्वप्न सच किया. एक टी वी बहस में बंगाल के दो इतिहासकार सुरंजन दास और अमलेन्दु दे आज विचार कर रहे थे. दे का मत था कि जिन्ना के दिमाग में पाकिस्तान का जहर इकबाल ने 1936 में भरा! दास 1941 के पहले के दौर के दंगों का वर्गीय चरित्र समझा रहे थे और कह रहे थे कि किसी युग को किसी व्यक्ति के आधार पर नहीं समझा जाना चाहिए. अब यह पूछने का मन हो रहा है कि फिर नेहरू युग और गांधी युग का क्या होगा? इतिहास में कभी कभी कडवा सच भी मानना पडता है. यह मानना चाहिए कि मुसलमानों की ओर से जिन्ना का समर्थन इतना स्पष्ट हो गया था कि कांग्रेस के नेताओं - नेहरू, राजेन्द्र प्रसाद और पटेल आदि को आभास हो गया कि अखंड भारत की स्वाधीनता संभव नहीं. इस विस्फोटक परिस्थिति के निर्माण में जिन्ना की भूमिका निर्णायक थी. 'डायरेक्ट एक्शन' के लिए दिए गये भाषण में जिन्ना क्या भारतीय इतिहास के एक विलेन की तरह नहीं बोले? क्या लाख कहने पर भी गांधी हत्या के बाद वे गांधी को महान हिन्दू नेता ही नहीं कहते रहे? किसी भी तरह वे हिन्दू की जगह व्यक्ति कहने को तैयार नहीं हुए.ऐसे व्यक्ति को आज जिस तरह जसवंत सिंह नेहरू और पटेल की तुलना में तरजीह दे रहे हैं तो क्या कहा जाए!

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